भारत भूमि अति पावन है। यह ऋृषि-मुनियों की भूमि है। इस पावन भूमि पर श्रीरामचन्द्र भगवान्, श्रीकृष्ण भगवान्, श्रीराधाजी, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी रामतीर्थ, रमण महर्षि, दादा भगवान्, गीता भगवान्, उमा भगवान्, हमारे गुरु भगवान्, हमारी गुरु माँजी जैसे परम प्रेमी व वैराग्यवान सन्त हुए हैं। इस पावन भूमि पर ध्रुव, प्रहलाद, मीरा, नचिकेता जैसे बाल भक्त भी हुए हैं। जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन भगवान् की आराधना में समर्पित कर दिया।
सदियों से भारत विश्वगुरु रहा है। यहाँ सन्त, ऋषि-मुनि, भक्त, साधक सब सत्संग-सेवा-सिमरन के लिए अपना जीवन समर्पित करके कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग, ध्यानयोग के द्वारा अध्यात्म की ऊचाँई तक पहुँच कर सारे विश्व के सामने अपना आदर्श रखते आये हैं। विश्व में पाँच ऐसे स्थानों की खोजना हुई है जहाँ रहने वाले ज़्यादातर लोग स्वस्थ, प्रसन्न रहते हुए भी 90 या 100 साल से अधिक की आयु के हैं। इस बात को जानने के बाद हमारा ध्यान जब भारत भूमि की तरफ गया तो हमने पाया कि भारत में भी कुछ छिपे हुए ऐसे स्थान हैं जहाँ पर रहने वाले ज़्यादातर लोग 90 या 100 साल की आयु के हैं और आनन्द में रहते हुए ईश्वर की उपासना में निरन्तर अग्रसर हैं।
विशेषतः यह दो स्थान हैं- ब्रज क्षेत्र (जो श्रीकृष्ण भगवान् की भूमि है) और हिमालय।
जो ब्लू जोनस में रहने वाले लोगों के जीवन में बातें देखी गईं, वह बातें इन भक्तों, सन्तों, योगियों के जीवन में सहज देखने में आती हैं, जो इस प्रकार हैं-
- भ्रमण या परिक्रमा करना (Move Naturally) –
जो भक्त ब्रज क्षेत्र में रहते हैं, वह परिक्रमा जरुर करते हैं। जैसे- वृन्दावनजी की परिक्रमा, गोवर्धनजी की परिक्रमा, बरसाने की परिक्रमा, दाउजी की परिक्रमा, चौरासी कोस की परिक्रमा। जो साधक या योगी हिमालय पर रहते हैं, वह तो लगातार भ्रमण करते ही रहते हैं। एक स्थान पर सिर्फ़ चर्तुमास में ही रहते हैं। निरन्तर चलते रहना उनका जीवन होता है। चर्तुमास का अर्थ है- वर्षा के चार महीने। - सामने लक्ष्य का होना (Knowing your purpose of life) –
भक्त का लक्ष्य भगवान् होते हैं। योगी का लक्ष्य मुक्ति या कहें आत्म-निष्ठा होती है। भक्त की हर चेष्टा यह होती है जिससे भगवत् प्रेम बढ़े। गुरु का संग, भक्तों का संग, सत्संग, ध्यान, नाम-जप, कीर्तन, भिक्षा के लिए भ्रमण, सन्त-सेवा, सद्ग्रन्थों का अध्यन। ये सब का एकमात्र उद्देश्य भगवत् प्रेम बढ़ाना है या कहें आत्म निष्ठा सुदृढ़ करना है। - ध्यान-भजन में समय लगाना (Down shifting i.e. Stress relieving activities) –
भक्त और योगी दोनों की दिनचर्या ब्रह्म मुहुर्त से शुरु हो जाती है और सारा दिन चलती है। भक्त एक ही दिन में सोलह से चौसठ माला तक सहजता से करते हैं। इसका अर्थ है उनके द्वारा लाखों की संख्या में नाम-जप होता है। योगी एक ही दिन में कई घण्टे ध्यान करते हैं और चलते-फिरते हुए भी उनका ध्यान स्वयं की ओर बना रहे ऐसा अभ्यास करते हैं। ऐसा देखा गया है कि भक्त और योगी इनकी निद्रा का समय काफी कम होता है। तीन से चार घण्टे में ही इन्हें पर्याप्त निद्रा का विश्राम मिल जाता है। ब्रज क्षेत्र में राधा-कृष्ण की भक्ति में तल्लीन ऐसे असंख्य भक्त सदियों से रहते आ रहे हैं। ज्ञान, वैराग्य के मार्ग पर चलते हुए आत्म-निष्ठा को सुदृढ़ करने में लगे असंख्य साधक, योगी हिमालय की घाटियों में विचरण करते रहते हैं। - एक समय या दो समय ही भिक्षा का अन्न पाना (80% Rule) –
भक्त और योगी दोनों के जीवन में देखा जाता है कि यह भिक्षा का अन्न ग्रहण करकर भजन-ध्यान में लगे रहते हैं। जो भक्त या साधक भोजन-प्रसाद बनाते हैं, वह सात्विक आहार दिन में एक या दो बार पकाते हैं। अपने इष्ट को भोग लगाकर फिर पाते हैं। उसमें से भी भोजन-प्रसाद को चिड़िया, कुत्ता, गाय, चीटियाँ, अतिथि आदि को पवाते हैं। इससे स्वभाविक ही उनका पेट 80% तक ही भरता है। - सात्विक और अल्प भोजन प्रसाद पाना (Plant Slant) –
सात्विक भोजन पाना जैसे- फल, सब्जी, दूध, दही, मट्ठा, रोटी-सब्जी, खिचड़ी, दाल-चावल ये सभी भोजन सुपाच्य होते हैं और इनका सार तत्त्व शरीर को सहजता से पोषित करता है। यह सारी भोजन सामग्री सीधे माँ प्रकृति से मिलती है। उपवास तो इनके जीवन में सहजता से शामिल होता है। - गुरु के संग या भक्तों के संग रहना और एकान्त में साधना करना (Finding right tribe) –
भारत में गुरुजी के पास साधक गुरुकुल में या आश्रम में रहते हैं। गुरुजी द्वारा बताई गई दिनचर्या के द्वारा वो साधना में तत्पर रहते हैं। इसमें सत्संग के साथ-साथ गुरु सेवा व आश्रम की सेवा निहित होती है। इसके साथ-साथ भक्त, साधक एकान्त में रहकर भजन-ध्यान का भी अभ्यास करते हैं। - अपने इष्ट गुरु या भगवान् के साथ समय बिताना (Loved one first) –
भारत में गुरु-शिष्य परम्परा सदा से चली आ रही है। साधक गुरु के साकार या निराकार सान्निध्य में रहकर ही निरन्तर साधना मार्ग पर बढ़ता है। भक्त अपने इष्ट के श्रीविग्रह यानि लड्डू गोपालजी, रामलला जी, राधा-कृष्णजी, शिवजी, गोवर्धन महाराज जी, शिवलिंग आदि को अपने साथ रखते हैं और उनको चिन्मय जानकर उनकी सेवा-पूजा में लगे रहते हैं। - सत्संग में रहना/ब्रज क्षेत्र, हिमालय में रहना/एकान्त स्थान में रहना (Finding a faith based community) –
ज़्यादातर भक्त ब्रज क्षेत्र में और साधक योगी हिमालय क्षेत्र में सन्यास लेकर विचरण करते हैं। एक खास बात है कि यह कहीं एक जगह नहीं ठहरते हैं। एक प्रसिद्ध कहावत है-रुक गया पानी तो जम गई काई
बहती नदिया ही साफ कहलाईयह एक विशेषता है कि ब्रज क्षेत्र या हिमालय से बाहर भी नहीं जा रहे हैं पर एक जगह भी नहीं रह रहे हैं।
- गंगाजल, यमुनाजल या तीर्थों के जल को पीना व उसमें स्नान करना (Having a drink everyday) –
गंगा, यमुना, सरस्वती आदि पवित्र नदियों में स्नान करना बहुत शुभ व पवित्र माना जाता है। जो भक्त या योगी इन पवित्र नदियों से दूर रहते हैं वह नहाने के पानी में गंगा जली से इस पवित्र जल की कुछ बूँदें मिलाकर ऐसी भावना रखते हैं कि हमने इस पवित्र नदी में स्नान किया है साथ ही भगवान् की पूजा करके गंगा जल, यमुना जल का सेवन करके आनन्द मग्न होते हैं। गुरु जी की कृपा से इन तथ्यों को जानकर हृदय शुकरानों व आनन्द में मग्न हो रहा है। अपने श्री सदगुरुदेवजी के श्री चरणों में बारम्बार साष्टांग नमन है जिन्होंने भारत भूमि की इस विलक्षणता का दर्शन कराया। सभी भगवद् भक्तों, योगियों के चरणों में हमारा साष्टांग नमन है।
Bahut sunder v motivating article – anant Koti shukrane Bhagwanji 🙏🌺🙏
Shukrana bhagwan jee
This article is really well researched and having very wide and valuable information details about the life of sages and all people who are in grahasth can follow above article
Shukrane bhagwan jee
बहुत बहुत खूबसूरती से लिखा गया लेख है।अनंत शुकराने भगवा जी
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