सहनशीलता का अर्थ किसी भी बात पर तुरन्त प्रक्रिया न देकर शान्त रहना है। कोई हमारे साथ गलत व्यवहार करता है तो हम बदले में उससे गलत व्यवहार न करके शांत रहें और अच्छा भाव रखें। तो यह हमारी सहनशीलता कहलाती है। आजकल संसार में अत्यधिक अशान्ति, उद्वेग, तनाव इन सबका मुख्य कारण है- सहनशीलता की कमी। बच्चों ने कुछ कह दिया, पति ने हमारा अपमान कर दिया या कोई बात हमारे मन के विपरीत हो गई तो हम तुरन्त react करते हैं, हमें गुस्सा आ जाता है।
सहनशील बनने के लिए हमें एक Mentor की, गुरु की आवश्यकता होती है। जब गुरु हमारे जीवन में आते हैं तो उनके सान्निध्य में, हमें गुरु का निष्काम प्रेम मिलता है तो हमें अपने मन या अहंकार की पहचान होने लगती है। हमारी सहनशक्ति बढ़ती जाती है और हम एक बेहतर इंसान बनते चले जाते हैं।
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुः खदाः।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।। (2/14)
अर्थ: हे कुन्तीपुत्र! सर्दी -गर्मी और सुख-दुःख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग तो उत्पत्ति-विनाशशील और अनित्य हैं, इसलिए हे भारत! उनको तू सहन कर।
श्रीमद्भागवत् के ग्यारहवे स्कन्ध के तैइस वे अध्याय का उदाहरण देकर गुरुजी ने बताया कि –
एक बार भगवान् कृष्ण के परम् प्रेमी भक्त उद्धवजी ने प्रार्थना कि- भगवन् ! मैं दुर्जनों के किये गये तिरस्कार को अपने मन में, अत्यन्त असह्य समझता हूँ। अतः इसको मैं कैसे सहन कर सकूँ ? वैसे हमें बतलाइये।
एक बार भगवान् कृष्ण के परम् प्रेमी भक्त उद्धवजी ने प्रार्थना कि- भगवन् ! मैं दुर्जनों के किये गये तिरस्कार को अपने मन में, अत्यन्त असह्य समझता हूँ। अतः इसको मैं कैसे सहन कर सकूँ ? वैसे हमें बतलाइये।
तब श्री भगवान् ने इस प्रकार कहा- उद्धवजी संसार में प्रायः मनुष्य बाणों से हुए जो यह घाव होते हैं उनसे होने वाली पीड़ा का उतना अनुभव नहीं करता है, जितनी पीड़ा उसे प्रियजनों की कटु वाणी पहुँचाती है। इस विषय में महात्मा लोग एक बड़ा विचित्र प्राचीन इतिहास कहा करते हैं, मैं वही तुम्हें सुनाऊँगा, तुम मन लगाकर उसे सुनो।
प्राचीन समय में, उज्जैन में एक तितिक्षु नाम का ब्राह्मण रहता था। वह बहुत ही कृपण एवं बुरे स्वभाव का था। धीरे-धीरे बड़े उद्योग से उसका कमाया हुआ सारा धन नष्ट-भ्रष्ट हो गया। अब वह बूढ़ा हो चुका था। उसने निश्चय किया कि अब मैं आत्म-लाभ से ही सन्तुष्ट रहकर अपने परमार्थ के सम्बन्ध में सावधान हो जाऊँगा। अब वह भिक्षा के लिये जहाँ भी जाता, दुष्ट उसे देखते ही टूट पड़ते और तरह-तरह से उसका तिरस्कार करके उसे तंग करते। उस समय में भी उसने अपना धैर्य न छोड़ा और उसे अपने पूर्व जन्मों का फल समझकर तनिक भी विचलित नहीं हुआ।
उद्धवजी ! कभी-कभी वह ब्राह्मण ऐसे उद्गार प्रकट किया करता- मेरे सुख अथवा दुःख का कारण न यें मनुष्य हैं, न देवता हैं, न ग्रह हैं, कर्म एवं काल आदि ही हैं।
श्रुतियों और महात्माजन मन को ही इसका परम कारण बताते हैं। इसलिये प्यारे उद्धव ! अपनी वृत्तियों को मुझमें तन्मय कर दो। अपनी सारी शक्ति लगाकर मन को वश में कर लो और फिर मुझमें ही नित्य युक्त होकर स्थित हो जाओ।
यही प्रश्न एक बार स्वामी अखण्डानन्दजी ने उड़िया बाबाजी से किया था। एक बार अखण्डानन्दजी ट्रेन में सफ़र कर रहे थे। उनके पास ही एक व्यक्ति लेटा हुआ था। अखण्डानन्दजी ने उसे थोड़ा सरकने के लिये कहा तो वह व्यक्ति बड़बड़ाने लगा और उन्हें लात मारने लगा।
अखण्डानन्दजी ने उड़िया बाबाजी से कहा- कि मुझे यह सब बहुत बुरा लगा। उड़िया बाबाजी ने कहा कि कूड़े के ढ़ेर पर बैठोगे तो कूड़ा तो लोग डालेंगे ही। कूड़े का ढ़ेर क्या है ? शरीर भाव, जीव भाव। यदि हम अपने को शरीर, मन मानते रहेंगे तो दूसरों की बातों का असर होगा ही। गुरुजी ने बताया कि सहन करना ही सबसे बड़ी सिद्धि है।
गुरुजी एक और उदाहरण से हमें समझाते हैं-
जापान में एक परिवार रहता था। उनके यहाँ एक रिपोर्टर जाता है वह पूछता है कि आपके यहाँ हज़ार लोगों का यह परिवार है। आप सब इतने प्रेम से कैसे रहते हैं ? वह वहाँ के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति के पास पहुँचता है। वह व्यक्ति कहता है कि मैं 120 साल का हूँ, यह मेरा परिवार है। हम सबको मान देते हैं और वह बुजुर्ग व्यक्ति उस रिपोर्टर को एक हज़ार पेज़ की एक किताब देता है और कहता है कि इसको घर जाकर पढ़ना। वह रिपोर्टर घर जाकर पुस्तक खोलता है और देखता है कि हर पेज़ पर लिखा हुआ था- सहनशीलता….सहनशीलता….सहनशीलता।
गुरु कहते हैं अपने सुख का त्याग ही सहनशीलता है। यदि हम अपने जीवन में शान्ति चाहते हैं तो गुरु के बताये निम्नलिखित सूत्र हम अपने जीवन में apply करें। ऐसा करने से हमारी सहनशक्ति धीरे-धीरे बेहतर होती जायेगी।
1. स्वीकार भाव (ACCEPTANCE)-
गुरु कहते हैं, हमारे जीवन में स्वीकार भाव हो। तुम जैसे भी हो, मुझे पसन्द हो। किसी को सुधारने मत चलो। यह धैर्य का मार्ग है। जब हम शुद्ध भाव रखते हैं, तो सामने वाला व्यक्ति भी बदल जाता है।
2. दोष-दृष्टि न हो-
‘‘कैसे खिलेंगे रिश्तों के फूल, अगर ढूँढ़ते रहेंगे एक-दूसरे की भूल।’’ यदि हम हर समय एक-दूसरे की गल्तियों को, दोषों को देखते रहेंगे तो क्या हमारा प्रेम हो पायेगा ? गीता में भी भगवान् श्री कृष्ण ने कहा है कि जो काम और क्रोध के वेग को सहन कर जाता है, वह मोक्ष के योग्य है।’ कोई कुछ कह रहा है तो हम शान्त रहें। हमें कोई चीज़ अच्छी नहीं लगती है तो हम सह जायें।
3. DON’T RE-ACT BUT RESPOND-
गुरु कहते है- Re-act मत करो, Respond करो। सामने से scene आ रहा है, ये मेरी destiny है पर मैं respond कैसे कर रहा हूँ, ये मेरा कर्म है।
हमारी तबियत ठीक नहीं रहती या हमें डायबिटिज है तो ये हमारी प्रारब्ध है पर उसको manage करना हमारा कर्म है। सोडा बोतल मत बनिये, पानी की बोतल की तरह शान्त रहिये।
4. क्षमा भाव-
गुरु कहते हैं, बड़ा दिल रखो, forgive and forget. सहने से हमारे बहुत पाप कर्म कट जाते हैं। अपने को देखें कि क्या हमारे अन्दर भगवद् भाव है ?, प्रेम है ?, सुनने और सहन करने की शक्ति है? क्षमा भाव है? कठिन परिस्थिति आने पर जो हमारे अन्दर है, वही बाहर आयेगा। गुरुजी का महामंत्र- ‘‘कोई बात नहीं’’ जीवन में लगायें। किसी ने कुछ कह दिया तो ‘‘कोई बात नहीं’’ कहकर let go करने की आदत डालें।
5. BE EMOTIONALLY STRONG-
गुरु के सान्निध्य में हम धीरे-धीरे अपने emotions जैसे-ईर्ष्या, क्रोध, घृणा आदि को नियंत्रित करना सीखते हैं। हमारे अन्दर जो negative भाव रहते थे, जिनके वश में होकर हम re-act करते थे, धीरे-धीरे कम होते जाते हैं और positive emotions जैसे- प्रेम, करुणा सबके हित की भावना, भगवद्भाव, संतोष बढ़ते जाते हैं।
6. प्रतिक्रिया को प्रेम से जीतें-
गुरु कहते हैं कि हम बैर का बदला प्रेम से दें। स्वयं से कहें- मैं और सब एक ही भगवान् के बच्चे हैं। सबका भला हो, सबका कल्याण हो। बार-बार ये न कहें- ये व्यक्ति मुझे irritate करता है। हमारे शब्द ही हमारे लिये मंत्र बन जायेंगे। जैसा बार-बार repeat करेंगे, वैसा ही हमारे सामने आयेगा।
7. BE CONNECTED WITH GOD-
हर समय भगवान् से connect रहें। सब-कुछ करने, कराने वाले भगवान् हैं। सब उन्हीं की शक्ति से हो रहा है। हर बात में भगवान् के समर्पित रहें। जब अनुकूल परिस्थिति होती है तब तो हम समर्पण कर देते हैं पर जब प्रतिकूल परिस्थिति आये और हम समर्पण कर पायें, यह बढ़िया बात है।
गुरु बार-बार समझाते हैं-‘‘तृणादपि सुनीचेन तरोरपि सहिष्णुना।अमानिना मानदेन कीर्तनीयः सदा हरिः।।’’
अर्थात्- तिनके से भी अधिक दैन्य भाव हो, वृक्ष के समान सहनशक्ति हो, मान की इच्छा न हो, दूसरों को मान देते चलें, सदा हरि का भजन, स्मरण करते रहें।
सारी कृपा,सा री मेहनत गुरुभगवांजी एवं गुरु मांजी आपकी है।आपकी कृपा से ही सहनशक्ति आ रही है ।पहले तो झट से प्रतिक्रिया हो जाती थी।Respond aur Reaction का difference भी आपने ही समझाया।क्षमा भाव भी आपकी कृपा से ही आ पाता है।Accept करना,सबमें भगवद्भाव रखना गुरुजी आपकी अहैतु की कृपा से ही संभव हो पा रहा है।ए मेरे प्यारे गुरुवार आपकी रहमतों को हम शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते।कोटि कोटि प्रणाम।
योगक्षेम वहामि अहम
जो मेरी योगक्षेम वहन करते हैं वो ही मेरे प्रभुजी मुझे सहन करना भी सिखाते हैं।सारी बड़ाई मेरे सतगुरु जी की है जो अपनी शक्ति देकर सहन करा रहे हैं
अन्यथा पहले सहन कर लिया होता।सारी शक्ति दुनिया में गंवा कर आये हैं।गुरुजी की शरण ने डूबते हुए को बचा लिया।
जय गुरुदेव जय गुरुदेव🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Really well written
Jeewan me aa jaye bus
Japan ki.family,titikshu brahmin sabhi examples india lge
Bhut mehnat se ye article guru kripa se likhne ke liye aabhar
Guru ji ki kripa se samaj aaya ki har paristhithi ko sahan karna hai aur yeh point bahut acha laga ki react na Karen but respond karna hai.
Guru ji k anant shukrane hain ki unki kripa v Prem se prayas hota hai aur abhi improvement aur karni hai .
Radhe Radhe bhagwan ji
गुरु भगवान जी और गुरु माँ के चरणो मे कोटि-कोटि नमन वन्दन है राधे राधे भगवान जी ।गुरु भगवान जी और गुरु माँ जी की कृपा से आज जीवन में सहनशीलता आ रही। उनकी असीम कृपा मेहनत के अनन्त अनन्त शुकराने है राधे राधे भगवान जी
योगक्षेम वहामि अहम
जो मेरी योगक्षेम वहन करते हैं वो ही मेरे प्रभुजी मुझे सहन करना भी सिखाते हैं।सारी बड़ाई मेरे सतगुरु जी की है जो अपनी शक्ति देकर सहन करा रहे हैं
अन्यथा पहले सहन कर लिया होता।सारी शक्ति दुनिया में गंवा कर आये हैं।गुरुजी की शरण ने डूबते हुए को बचा लिया।
जय गुरुदेव जय गुरुदेव🙏🙏🙏🙏🙏🙏
गुरु भगवान जी और गुरु माँ के चरणो मे कोटि-कोटि नमन वन्दन है राधे राधे भगवान जी ।
गुरु भगवान जी की कृपा से आज जीवन में सहनशीलता आ रही है उनकी असीम कृपा मेहनत के अनन्त अनन्त शुकराने है ।।