हम सभी समृद्धि अर्थात् prosperity चाहते हैं कोई भी नये साल का कार्ड है या दीपावली का कार्ड है, उसमें लिखा होता है-
“We wish you health, wealth and prosperity.
आइये, समझते हैं कि समृद्धि क्या है ?
श्रीमद्भगवतगीता में अठारवें अध्याय के अन्तिम श्लोक में आया है कि जहाँ परमात्मा हैं वहाँ श्री, विजय, विभूति और अचलनीति है, वहाँ सब-कुछ है।
जहाँ परमात्मा हैं, वहाँ समृद्धि अपने आप आती है। समृद्धि का मतलब ये नहीं है कि हमारे पास खूब पैसा हो, खूब बेैंक बेलेन्स हो। समृद्धि है कि हम अन्दर से सन्तुष्ट व तृप्त हों। हमारी अन्दर से भावना हो कि मैं सन्तुष्ट हूँ। मैं अपने को तृप्त अनुभव करता हूँ।
Prosperity is inner satisfaction. Prosperity is an outer expression of our inner feelings. What you think, you experience.
अन्दर में हम जैसा सोचते हैं वैसा ही बाहर हमारे सामने आता है।
दृष्टान्त: एक पैसे वाला आदमी अपने बेटे को गाँव लेकर जाता है यह दिखाने के लिये कि गाँव में कितनी गरीबी है।
वह लड़के से पूछता है- तुमने देखा है कि गाँव में कितनी गरीबी है। लड़के ने कहा- हाँ ! मैंने देखा कि हम कितने गरीब हैं।
उसके पिता ने यह सुनकर आश्चर्य से कहा- क्या ? लड़के ने कहा- हाँ पिताजी, मैंने देखा कि हमारे पास एक गाय है और इनके पास बहुत सारी गायें हैं। हमारे पास एक छोटा-सा स्वीमिंग पूल है, इनके पास तो पूरी झील है। हमारे पास एक लाइट वाला घर है इनके पास तो पूरा तारों का आकाश है। फिर मैंने देखा कि हमारे पास एक छोटा-सा गार्डन है, इनके पास बहुत बड़े-बड़े खेत हैं। यह सुनकर उसके पिताजी अवाक रह गये कि मैं क्या सोच रहा हूँ? और ये क्या सोच रहा है? सब-कुछ हमारी सोच पर निर्भर करता है।
Richness is inner contentment, inner satisfaction.
एक गरीब आदमी जो गाँव में रहता है वह भी खुश रह सकता है, तृप्त हो सकता है। देखें कि हमारी धारणा (belief system) क्या है? क्या हमारी धारणा यह है-
- पैसे पेड़ पर उगते हैं क्या ?
- पैसा कमाना बड़ा मुश्किल है।
- महीने के आखिर में मेरा पर्स बिल्कुल खाली हो जाता है।
- कोई बीमारी आ जाये तों सारे पैसे खर्च हो जाते हैं।
- कोई मेहमान घर आ जाये तो सारा बजट ही फेल हो जाता है।
- इस जिन्दगी में, मैं तो कभी अमीर हो ही नहीं सकता।
- यह जिन्दगी तो गरीबी में ही बितेगी।
- मुझे अच्छी नौकरी तो कभी मिलेगी ही नहीं।
- हमारे पास बहुत कर्ज है।
- हमारा यह कर्ज कैसे चुकेगा ?
- हे भगवान्…..कर्ज़ा…..कर्ज़ा…..कर्ज़ा….। कैसे चुकेगा ?
- किसी को मत बताओ अपने कर्ज़े की बात, न ही अपना बैंक बेलेन्स।
गुरु कहते हैं कि यह जितनी भी नकारात्मक धारणाएँ हैं इनको छोड़ते जायें, इनको अपने दिमाग में मत रखिये। अगर हम नकारात्मक सोच रखेंगे कि हमारे पास पैसे नहीं हैं और न ही कभी होंगे तो आपके पास पैसा कभी नहीं आयेगा। समृद्धि का मतलब यह नहीं है कि खूब बैंक बेलेन्स हो, बहुत ज्वैलरी हो, बहुत बड़ा मकान हो। समृद्धि का मतलब है कि हम अन्दर से खुश रहें।
‘‘खुशनसीब वह नहीं, जिनका नसीब अच्छा है
खुशनसीब वो हैं जो अपने नसीब से खुश हैं।’
जीवन में समृद्धि कैसे आये ? इसके लिये दस नियम हैं-
1. मैं हर अच्छी चीज़ के लिए जीवन में लायक हूँ। ( I deserve all the good things in life.) कभी ये नहीं सोचें कि मुझे यह चीज़ कभी नहीं मिल सकती। परमात्मा के पास abundance है। हर चीज़ प्रचुर मात्रा में है। वहाँ पर किसी भी चीज़ की कभी कोई कमी नहीं है। कमी हमारी सोच में है।
‘‘ छोटी सोच और पैर की मोच
आदमी को कभी आगे नहीं बढ़ने देती है।’’
When we concentrate on the lack in debt, even if abundance falls in our lap, we let it go. We’ll have more lack and debts. यकिन मानिये ब्रह्माण्ड में हर चीज़ बेहद है। आकाश के तारों को गिनिये, पेड़ों के पत्तों को गिनिये। टमाटर के बीज़ों को गिनिये, बारिश की बूँदों को गिनिये, बाजार में सजे फलों को गिनिये, क्या किसी चीज़ की कमी है ? नहीं। हर चीज़ ढ़ेरों-ढ़ेर है। हमारे पास क्यों कमी है ? इसका कारण है हमारी सोच। मन का काम तो कमी दिखाने का है। मन से कहिये मैं अपने परमात्मा के राज्य में बहुत खुश हूँ, बहुत सन्तुष्ट हूँ। भगवान् ने मुझे सब-कुछ दिया है। जब हम शुकराना मानते हैं, हम सोचते हैं कि हमारे पास सब-कुछ है तो हमारे पास आता है। हमारी दृष्टि आधे खाली गिलास पर है या आधे भरे गिलास पर है- हमारी दृष्टि किस पर है ?
क्या हम यही सोचते रहते हैं कि-
- बिजली का बिल इतना क्यों आ गया ?
- बच्चों की पढ़ाई बहुत महँगी हो गई है।
- डॉक्टर के पास जाओ तो एक हजार का नोट खर्च हो जाता है।
- रिश्तेदार आ जायें तो घर का बजट फेल हो जाता है।
- होटल जाना तो बहुत महँगा हो गया है।
- किसी छुट्टी पर जाना तो बहुत ही मुश्किल है।
- दान-पुण्य के लिये पैसे बहुत चाहिए
- कहाँ से लायें पैसा ? है ही नहीं।
हमारी दृष्टि में जब है ही नहीं तो कहाँ से आयेगा पैसा ? हमारी सोच यह है कि हमारे पास पैसा है ही नहीं। जब हम कहते हैं कि है ही नहीं तो भगवान् कहते हैं – तथास्तु। हम कहते हैं बहुत है, तो भगवान् कहते हैं- तथास्तु।
देखें कि हमारी सोच क्या है ? भगवान् तो हर समय तथास्तु कह रहे हैं।
हम देखें अगर हमारा फोकस पैसा खर्च करने पर है, पैसा आने पर नहीं तो पैसा खर्च ही खर्च होगा, पैसा आयेगा नहीं। गुरु अभ्यास कराते हैं कि सकारात्मक सोचो। अपने से कहें- भगवान् मुझे बहुत दे रहे हैं जितनी मुझे आवश्यकता है, उससे ज़्यादा दे रहे हैं। हर वस्तु मेरे पास समय से पहले पहुँच जाती है। आपने जरुर देखा होगा खर्चा आता है तो पैसा भी आ जाता है। किसने भेजा ? कहाँ से आया ? आपको बोनस मिल जायेगा, आपने कहीं जमा कराया होगा तो वहाँ से आ जायेगा
‘‘देने वाले ने इतना दिया है कि झोली में न समाया।’’
बार-बार कहिये- हे प्रभु ! मैं आपके राज्य में बहुत खुश हूँ। आपने बहुत दिया है।
2. शुकराना मानें। (Be grateful) – जब हम शुकराना मानते हैं तो उसमें सभी देवताओं- श से शिव, क से कृष्ण, र से राम, न से नानक की उपासना हो जाती है। जिस वस्तु का शुकराना माना जाता है। वो वस्तु हमारे जीवन में बढ़ती है। अच्छी परीस्थिति का शुकराना मानने से हम अपने जीवन में अच्छी परीस्थिति को आमन्त्रित करते हैं। जड़ चीज़ भी हमारा शुकराना स्वीकार करती है। हमारे घर में बहुत सारी बिजली से चलने वाली चीज़े हैं। जैसे- मिक्सी, टोस्टर, फ्रीज़ आदि। हम जड़ चीज़ों का भी शुकराना मानते हैं और उनको प्रेम से इस्तेमाल करते हैं तो वो ज़्यादा चलती हैं। किसी-किसी के यहाँ तो सब चीज़े खराब ही पड़ी रहती हैं। क्यों खराब पड़ी रहती है ? क्योंकि उनको ठीक तरह से इस्तेमाल नहीं करते हैं। कभी उनका शुकराना नहीं मानते हैं। बस पटका-पटकी करते हैं। फोन भी ऐसे पटकते हैं- जैसे फिर कभी इस्तेमाल ही नहीं करना है। जो आप देते हैं, वही लौटकर मिलता है। जब हम किसी चीज़ का शुकराना नहीं मानते और प्रेम से उसको इस्तेमाल नहीं करते तो ये प्रेम की कमी दिखाता है। साथ ही यह दिखाता है कि हम उसकी कीमत नहीं कर रहे हैं।
गुरु कहते हैं अन्दर से प्रेम व शान्त रहें और शुकराना मानें। आप अपने चारों तरफ देखेंगे कि सेवाधारी के रुप में, भगवान् कितने रुपों में आकर आपकी सेवा कर रहे हैं। क्या आप कभी शुकराना मानते हैं? सब्जी वाला सब्जी दे जाता है, दूध वाला दूध दे जाता है। फल वाला फल दे जाता है। कितने लोग आपकी सेवा कर रहे हैं मन तो कहेगा कि हम तो पैसे दे देते हैं, हम क्यों शुकराना मानें ? शुकराना मानने से प्रेम रुपी मिठास आ जाती है और मीठा सबको अच्छा लगता है। आप 100 रुपये शुकराने के साथ खर्च करें तो आपको बहुत अच्छा लगेगा और आप एक लाख रुपये रो-रोकर खर्च करें तो आपको वह खुशी नहीं आयेगी इसलिए कुढ़-कुढ़ कर मत खर्च करिये, शुकराना मानिये।
3. हर नई चीज़ के लिये जगह बनाइये।(Make room for the new) समृद्धि के लिये जगह बनाइए। लक्ष्मीजी तो आने को तैयार हैं क्या उनके लिए हमने जगह बनाई है? जरा देखें अपने चारों तरफ, अपने घर में। फ्रीज़ भरा पड़ा है। अलमारियाँ तो भरी पड़ी हैं। दराजें तो ठूसी पड़ी हैं। हमारे घर में चलने के लिये जगह नहीं है। लक्ष्मीजी कहाँ आयेंगी ? वास्तुशास्त्र कहता है कि अपने घर को खाली रखिये। जितनी आपकी अलमारियाँ खाली होंगी, फ्रीज़ खाली होगा, घर में भी फर्नीचर कम होगा, उतनी ज़्यादा आपके घर में समृद्धि आयेगी। अगर आपका घर व्यवस्थित है तो यह दिखाता है कि आपका मन व्यवस्थित है। अगर आपका घर व्यवस्थित नहीं है, आपकी अलमारियाँ व्यवस्थित नहीं हैं तो यह दिखाता है कि आपका दिमाग भी व्यवस्थित नहीं है।
“When in doubt, throw it out.”
जब आपको लगे कि इसको रखें या फेंक दें, तो उसको फेंक दें। आपने एक नया कपड़ा लिया तो एक पुराना दे दीजिये। आपने नया फ्रीज खरीदा तो पुराना दे दीजिए। फ्री में दे दीजिए। किसी जरूरतमंद को दे दीजिए। हम अपने घर को, अपनी गैलरी को, अपने स्टोर को सबको कबाड़खाना बना लेते हैं। अपनी छत को देखिये, बरामदों को देखिये ? कबाड़खाना तो नहीं बना रखा है। Clean house shows a clean mind. गंदे और अव्यवस्थित घरों में लक्ष्मीजी नहीं आती हैं। किचिन को भी साफ रखें। जितने भी टूटे डिब्बी-डिब्बियाँ हैं, सबको अलविदा कर दीजिए यानि सबको हटा दें। छोटी चीजें जैसे- पॉलिथिन, पुराने अखबार मत रखिये। फ्रीज रोज़ साफ़ होना चाहिए। बासी सामान मत रखिए। अलमारियाँ बिल्कुल व्यवस्थित रखिये, सजावट की चीज़ें भी ज़्यादा मत रखिये। दीवारों पर पेन्टिग ज़्यादा मत टाँगिये। एक दिवार पर एक पेन्टिग। पिछले छः महीने में आपने जो वस्तु इस्तेमाल नहीं की है, उसे दे दीजिए। यह नियम जीवन में लगाएँ- Buy one, give one.
4. देने का भाव रखें। (Make a habit to give)-
बड़ा दिल रखें, उदारचित्त बनें। जो कुछ है आपके पास वो देने का भाव रखें। लक्ष्मीजी तीन प्रकार के लोगों के घर नहीं आती हैं-
- पहला जो सब अपने ऊपर खर्च कर लेते हैं।
- दूसरा माँगने और इच्छा करने वालों के यहाँ।
- तीसरा जिनके हृदय में करुणा और प्रेम नहीं है।
मन में देने का भाव आये तुरन्त दे दें। मन कब बदल जाये, कुछ पता नहीं है।
दृष्टान्त- एक स्त्री एक सन्त के यहाँ रात को एक लौटा घी लेकर आ गई। सन्तजी ने कहा कि इतनी रात को क्यों आ गईं, सुबह आ जाती। स्त्री ने कहा कि सुबह तक अगर मन बदल जाता तो क्या करती ? इस दृष्टान्त से यह सीखने को मिलता है कि जैसे ही देने का भाव आये फौरन दे दो। मन कब बदल जाये कुछ पता नहीं।
5. जैसा दोगे, वैसा मिलेगा। (what you give, you get back)-
गुरु कहते हैं कि फटा कपड़ा मत दो। धोकर, सीलकर, प्रेस करके दें। दृष्टान्त- एक गाँव में एक व्यक्ति था। वह पंसारी की दुकान से सामान लाया करता था। उसे रोज एक किलो मक्खन चाहिये होता था। वह रोज़ एक किलो मक्खन लेने जाया करता था। उसने एक दिन सोचा किदेखूँ तो सही कि यह मुझे एक किलो देता भी है या नहीं। उसने तोलकर कहा कि यह तो 900 ग्राम है। उस व्यक्ति को बड़ा गुस्सा आया। उसने दुकानदार से जाकर बोला कि तुम मुझे रोज़ 900 ग्राम मक्खन देते हो। उस दुकानदार ने कहा मैं 900 ग्राम नहीं देता था बल्कि तुम्हारे यहाँ से जो चीनी आती है उसी को एक तरफ रखकर मैं मक्खन तोल देताहूँ। वह आदमी खुद हर चीज़ को 900 ग्राम तोला करता था। इससे यह सीखने को मिलता है, जैसा देंगे, वैसा ही लौटकर मिलेगा। इसलिए सावधान रहें।
6. अपना आध्यात्मिक खाता खोलें। ( Open your cosmic spiritual account)-
Cosmic Account क्या है ? जब भी हम शुकराना मानते हैं, शुद्ध भाव रखते हैं, सकारात्मक सोचते हैं, सबको ज्ञान, भक्ति व निष्काम प्रेम देते हैं, सर्व के हित के लिए जीते हैं तो हमारे cosmic account में पुण्य रुपी पैसा जमा होता है। Bless everyone with open arms. हमेशा कहिये- सबको आनन्द, शान्ति मिले, सबका विकास हो, सबकी भक्ति बढ़े।
‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः , सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत।’’
जो भी हम positive affirmations, नाम-जप करते हैं, वह सब हमारे cosmic account में जमा होता जाता है।
7. अपने बिलों को प्यार करिये।(Love your bills)-
कुढ़-कुढ़ कर पैसा देंगे तो कुढ़-कुढ़कर ही पैसा आयेगा। खुश होकर बिल का भुगतान करिये। सेवाधारी को भी खुश होकर पैसा दीजिए। भगवान् का शुकराना मानिये कि आपके पास बिल भरने के पैसे हैं। तभी आपके पास समृद्धि आयेगी। आपके घर में बरकत होगी। गुरु कहते हैं- बड़ा सोचो कि मैं एक हज़ार प्रेमी भक्तों को भोजन करा रहा हूँ। सब भक्तों को एक-एक गाय दान दे रहा हूँ।
8. दूसरों की उन्नति देखकर प्रसन्नचित्त हों।(Rejoice in other people’s good fortune.)-
दूसरों की उन्नति देखकर कभी भी चिढ़े नहीं। किसी को भी आगे बढ़ते देखकर कुढ़े नहीं। सबको bless करें। Don’t be jealous of anyone’s prosperity. We spoil our present and future when we are jealous. अपनी आय और स्त्रोत को सीमित मत मानिए। कहिये- मेरे पास अनन्त है। भगवान् के बहुत शुकराने हैं।
9. प्रशंसा को स्वीकार करें और उसमें गुरु की, भगवान् की कृपा का अनुभव करें। (Accept appreciation and Redirect it towards Guru and God)-
जब भी आपके जीवन में प्रशंसा आये, समृद्धि आये, यह मत सोचिए कि मैं इसके लायक नहीं हूँ। कहिए- भगवान् की बहुत कृपा है, बहुत शुकराने हैं। नकारात्मकता लाने वाली चीज़ों को अपने जीवन से हटा दीजिए। कर्तापने को हटाकर हर चीज़ को परमात्मा से जोड़ दीजिए। खूब नाम-जप करिये। चलते-फिरते जप करते हैं तो हमारा यह जन्म सुधरता है, हमारे जीवन में भगवान् भी आते हैं और खुशहाली भी आती है। जब हमारा लौकिक (आध्यात्मिक) खाता भर जायेगा तो लक्ष्मीजी हमारे जीवन में स्वतः आ जायेंगी।
10. ईर्ष्या और नकारात्मक विचारों को जीवन से निकालते जायें। (Keep removing jealousy and negative thoughts from your life)-
जैसे- जो खाना हम खाते हैं वो 24 घण्टे में बाहर निकल जाना चाहिए, नहीं निकलेगा तो हम बीमार पड़ जायेंगे। नकरात्मक भावनाएँ जैसे- द्वेष, गुस्सा, असुरक्षा, ग्लानि अगर हम इनको सत्संग, ध्यान के द्वारा बाहर नहीं निकालेंगे तो हमारे जीवन में सुख-समृद्धि नहीं आयेगी और हमारे जीवन में बीमारी ही आयेगी। हमारे जीवन में सुख-समृद्धि आये, इसके लिए अन्दर से मान लें कि भगवान् आपने बहुत दिया है, आपकी बहुत कृपा है। सबको खूब देने का भाव रखिये, खूब खुश होइये, सबको खूब bless करिये, खूब जप करिये।
Thank you Guruji for changing our belief system.
You qork very hard to change us and make our life Happy and Prosperous.
Shukrana Shukrana Shukrana.
Abundance in nature is the key
What we give we get back …….
Thank you for motivating and inspiring us and making our life beautiful.
राधे राधे मेरे परम पूज्य सत गुरु भगवान जी,सत्य और आप जी के पावन अनुभवों से ही ये बात पक्की होती है, कि सब कुछ हमारी सोच का परिणाम है, हे नाथ जी आप जी की ही असीम कृपा से ALL IS WELL,ALL IS WELL, ALL IS WELL
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Excellent article
Very well written
Nicely explained
Touched my soul
Thankyou so much bhgwan ji for such a wonderful article
Many many thanks to Guru ji for posting an eye opening article on prosperity with examples.
All the points are worth emulating and if any thing is being followed all because of Guru Bhagwan ji .All the credit and thanks for making us a better person than before.Nothing was and is possible ,,only guru bhagwan ji s kripa.